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विरासत
मानव जीवन का सबसे अनमोल एक वरदान,
जिनके ज्ञान धनी पूर्वज थे था हर कौशल का ज्ञान।
अपने कला ज्ञान कौतुक से पृथ्वी को स्वर्ग बनाया,
तुंग गढ़ा औ भवन बनाकर धरती को चमकाया।।

अति दुर्लभ कल्पनातीत हर एक कार्य को साधा,
रचे अनेको दिव्य अजूबे सही अनेको बाधा।
तब जो संभव कर डाला वो अभी असंभव लगता है,
या हम खो बैठे ओ प्रतिभा आलस उद्भव लगता है।।

दिव्य विरासत प्राक मनू के सबके सब दुर्लभ हैं,
ज्ञान गवां बैठे आलस में इस कारण नहीं सुलभ है।
कृति पूर्वजों की अनुपम है संरक्षण आवश्यक है,
सभ्य यशस्वी इससे ही यही सभ्यता रक्षक है।।

ज्ञान कला की खान वास्तु स्थापत्य हमारा सब अच्छा,
सभी दिव्य अद्भुत अद्वितीय सब और सभी से है सच्चा।
मिटे बहुत कुछ हैं विलीन पर अभी मात्र हम अडिग खडे,
है अपनी सभ्यता यशस्वी और विरासत सभी पड़े।।

रखो ध्यान प्राक प्रतिभा का यही हमारा धन है
खेल कला कौतुक रचना जीवंत देश का तन है।
गर्व करो अपनी संपदा पर जिससे गौरवशाली देश,
रखो संजो कर प्राक विरासत और संजोकर अपना देश।।

लेखक--- अरुण कुमार शुक्ल