...

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इश्किया बलमा
इश्क़ की स्याही में
रंग तुम्हारे भी हज़ार थे
कुछ पतझड़ से बेजार थे
तो कुछ खिलते बहार थे
वो दिन भी क्या ख़ूब थे
जब बातें हज़ारों होती थी
बस देख तेरी भोली सूरत
मैं चैन की नींद सोती थी
अब के सावन तुम फिर आना
सपनों में मेरे खो जाना
भर लूंगी तुझ को बाहों में
फिर छोड़ कर मुझ को न जाना
© Aphrodite