इश्किया बलमा
इश्क़ की स्याही में
रंग तुम्हारे भी हज़ार थे
कुछ पतझड़ से बेजार थे
तो कुछ खिलते बहार थे
वो दिन भी क्या ख़ूब थे...
रंग तुम्हारे भी हज़ार थे
कुछ पतझड़ से बेजार थे
तो कुछ खिलते बहार थे
वो दिन भी क्या ख़ूब थे...