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भोलेनाथ
जिसके सिर पर विराज
चंद्र हो रहा है गौरवान्वित
जिसकी जटाओं से उदगम
है पवित्र गंगा का , जिसने
सदा ही देखा सब जीव को
समान है वो शीतल शांत
मेरा भोला महान है ।
जिसके क्रोध से अंबर कांपे
तीसरा नेत्र खुले तो विश्व विनाश
हो जावे अदभुत है हर बात
देवी देवता भी करते जिनकी
पूजा समान है वो ही तो
मेरे प्यारे भोलेनाथ हैं।
© sac_lostsoul
चंद्र हो रहा है गौरवान्वित
जिसकी जटाओं से उदगम
है पवित्र गंगा का , जिसने
सदा ही देखा सब जीव को
समान है वो शीतल शांत
मेरा भोला महान है ।
जिसके क्रोध से अंबर कांपे
तीसरा नेत्र खुले तो विश्व विनाश
हो जावे अदभुत है हर बात
देवी देवता भी करते जिनकी
पूजा समान है वो ही तो
मेरे प्यारे भोलेनाथ हैं।
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