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आत्म ज्ञान
देखो बड़ी तीव्रता से बहती जा रही ये बेहोशी का बहाव।
ये चेतना के ऊपर बन बैठी है घाव।
हम सब इस बेहोशी की बहाव में बहते चले जा रहे।
अंदर में बैठा एक जानवर हाथों में कैंडल लिए मगरमच्छ के आसूं बहाए जा रहे ।
ये तन से रोता मन ,मन से न कभी रोया ये मन
ये नारी ये स्त्री हमारे लिए क्यों ?हो जाती एक वस्तु (materliastic)एक परलोभन।
बहन बेटियों की ये दुर्दशा होते देख ये आँखें बस रोती ये आत्मा ना रोती 😭😭😭😭😭😭जब बहन बेटियों की इज्जत की चिर हरण होती।
क्या?ये सिलसिला यू ही चलता रहेगा बाहरी तथ्यों का हवाला देकर ,एक दुसरे के ऊपर दोषारोपण करके क्या ये...