...

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बुलंद हौसले
सोचती हूँ जो मैं वो तुरंत मिलता नहीं,
मगर अगर मेहनत करूँ मैं
तो मंजिल मुझसे दूर नहीं।
अनजान थी खुद से, 'कौन हूँ मैं?'
होता था बस यही एक सवाल
बिना जवाब के न जाने क्यूं,
दिल रहता था यूँ ही बेकरार

जान पाना यु खुद को था कोई आसान नहीं
हार मान लूँ मैं यूँ ही ये मेरे बस का काम नहीं
परिवार और अपनों से मिली समाज की परंपराओं को जाना
हर किसी ने कहा लडकी हो तुम छोड अपनों को किसी और के घर ही हैं तुमको जाना
जिम्मेदारी हो तुम सिर्फ माँ-बाप और परिवार की लडकी की शादी करके विदा करना ही परंपरा है इस समाज की

समाज की...