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गुरु वही जो बाँट दें। जो हँसते-हँसते दे दे।
अगर तुम गुरु के जीवन की ओर झांक कर देखो, तो तुम पाओगे गुरु का सारा का सारा जीवन बाँटने में बीत जाता है, देने में बीत जाता है। गुरु संग्रहित ही इसलिए करता है ताकि बाँट सके, ताकि दे सके।
गुरु कमाता ही इसलिए है कि किसी को कुछ न कुछ दे सके। बाँटना कोई सामान्य काम नहीं, बाँट वही सकता है- जिसमें देने की ताक़त हो, जो देने से न थकता हो, वही बाँट सकता है।