...

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मैंने खरोंच ली...
मैंने पहचान तक खरोंच ली अपनी,
कि उनके नाख़ूनों के घाव थे लगे भरने...

फिर कोई ज़ख़्म ख़ाली किया मैंने,
कैसे भरी रह गई तुमसे, बावज़ूद इसके...

मैं भूल आई कहीं खुद को ज़िन्दा,
शहर में दफ़नाये गये कुछ दर्द आहिस्ते...

पिछली बारिश आज तक पिघली नही,
है दूरियाँ बहुत बादल की ज़मीं से...

© kriti trip

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