...

5 views

छोड़ दे।
छोड़ दो अब खेलने की ख्वाइशें
छोड़ दो सपनो की आज़माइशे।
कि वक़्त ढल चुका
सारे सबूत दे चुका।
छोड़ दो ये ज़िद्द
ज़िंदगी अपने मन मुताबिक बिताने की ।।
मोड़ दो इस दिल के सभी तार को
रोक दो इच्छाओं के आंभर को ।।
जो जा चुका ज़िद्द क्यों है अब रोकने की
जो बह निकला ज़िद्द क्यों है अब सोकने की ।।
कि उर्म ढल रही है अब तो
पल-पल जल रही है अब तो । ।
कि अब निकल जा स्वप्नलोक से
करे दे विदा ख़ुद को इस रोग से ।।

© All Rights Reserved