...

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कौआ बत नहीं
काक एक बुरी अंकन दृष्टि
लिए रखे अपने स्वर पर बुरी तात
नजर में हर रखे सब की बुराई
उसकी दृष्टि देख रही हर ओर अपनी कुढन
वात उसकी संकेत बन चले
फिर भी ताल से उसकी बुराई चले
क्या कहे
जाने हर मानुष की कहानी
तभी बुरी नजर का व्यापक बनाया
उसे दिया यही कार्य जग ने बनाया उसको अपना बुरा सिपाही
पितृ चाहे इसके साथ लाये गये
चाहे बचपन में प्रयास का यहीं उदाहरण बताया
केवल एक दिन तक पूजे
वो जाने ये जग अच्छे तक अपना कर चले
उसका बुरा कहने या बताने पर अवहेल करे
अपने आप को बड़ायी करने से सजो कर रखे
वो इस जान से परे की बुरे कदम का ध्यान देने रखने वाले हैं उसके अनुयायी
अभी कहां जग देखा इसने
तभी मोह से भरा उसने
ताकि चल सके कर एक अडिग वचन
काक उसका स्वर चाहे सुर नहीं
या यूँ कहे सुर बनाने वाले ने उसे चुना नहीं
सभी सूचकांक जो बुरा उसे दूर किया गया
शुभ और अशुभ अन्तर जाने
लेकिन बताने वाले को अलग तरीके से ध्यावे
अच्छे को पास बताने हेतू बुराई में लाया गया
बस कार्य पुरा कर रहा वो काक अपना
निर्भव हो कर रहा भोग रहा स्वभाव बुरा
वो जाने जो भाव द्रष्टि में बसा ले कोई
वही स्व बना लेई ।
जग का करुणा से कोसो दूर ध्येय।

© 🍁frame of mìnd🍁