...

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कौआ बत नहीं
काक एक बुरी अंकन दृष्टि
लिए रखे अपने स्वर पर बुरी तात
नजर में हर रखे सब की बुराई
उसकी दृष्टि देख रही हर ओर अपनी कुढन
वात उसकी संकेत बन चले
फिर भी ताल से उसकी बुराई चले
क्या कहे
जाने हर मानुष की कहानी
तभी बुरी नजर का व्यापक बनाया
उसे दिया यही कार्य जग ने बनाया उसको अपना बुरा सिपाही
पितृ चाहे इसके साथ लाये गये
चाहे बचपन में प्रयास का यहीं उदाहरण बताया
केवल एक दिन तक पूजे
वो जाने ये जग अच्छे तक...