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आज इंटरनेशनल मेन्स डे है ?
क्या तुमने कभी किसी मर्द को देखा है
क्या उसके पीछे छुपे दर्द को देखा है
नहीं देखा है तो मेरी नज़र से देखो
अच्छी बुरी हर नज़र से देखो

वह देखना ज़रूरी है जो अनदेखा है
जिसमें अपने जज़्बात को अपने अंदर समेटा है
इसमें कोई एहसान की बात नहीं होती
दुनिया हम मर्दों के लिए कभी नहीं रोती

किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता , कितनी कठिन उसकी डगर है
क्योंकि आपको पता ही नहीं ,
वह 19 नवंबर के अख़बार की एक ख़बर है

घर की सेविंग चाय- सूट्टे में उड़ाता हुआ
पूरे घर का ख़र्चा, अपने कंधों पर उठाता हुआ
खुद सैड रहकर ,
बच्चों का न्यू ईयर हैप्पी मनाता हुआ
मिल जाएगा कोई ना कोई मर्द,
अपना दर्द छुपाता हुआ

बॉर्डर पर तुम्हारे लिए लड़ता है
समाज में चार लोगों से डरता भी है
वह एक फ़ौजी का नाप भी है
और हॉं,
वह एक बेटी का बाप भी है

तूफ़ानों में भी अपना पैर जमाया हुआ
मेहनत के पसीने में नहाया हुआ
मिल जाएगा कोई ना कोई मर्द ,
अपना दर्द छुपाता हुआ

वह एक भाई भी है
राखी से बंधी उसकी कलाई भी है

वह इंट्रोवर्ट भी है, बैटमैन वाली एक टी-शर्ट भी है
एक लड़की पर वह मरता है
और हॉं,
उसको कहने से वह डरता भी है

दिल उसका भी टूटा है, लेकिन वह नाराज़ नहीं है
वह एक ऐसी चीख़ है , जिसमें आवाज़ नहीं है
किसी का दुपट्टा उसके लिए कोई टॉय नहीं है
वह बॉय तो है , लेकिन प्लेबॉय नहीं है

अपनी हज़ार परेशानियों में भी मुस्कुराता हुआ
फिर भी किसी से कुछ न बताता हुआ
मिल जाएगा तुम्हें , कोई ना कोई मर्द
अपना दर्द छुपाता हुआ


वो हाथ उठाए तो बेदर्द है
और मार खा जाए तो नामर्द है

माना कि वह पर्फेक्ट नहीं है , क्या इसके लिए उसकी कोई रिस्पेक्ट नहीं है
रोज अंदर थोड़ा-थोड़ा मरता हुआ ,
अंधेरे से ज्यादा सवेरे से डरता हुआ

हर कंडीशन में खुद को एडजस्ट करता हुआ,

खुद भूखे रहे , अपने परिवार को खिलाता है ,
और दिन भर 'ऑल मेंस ऑर डॉग' की गाली भी खाता है

एक पति भी है और मजाक में कहें तो एक दुर्गति भी

शॉपिंग बैग को अपने कंधों पर उठाया हुआ,
क्रेडिट कार्ड के बिल से नज़रें चुराया हुआ

सभी के फिजूलखर्ची का उसके पास हिसाब है,
चेहरा उसका एक खुली क़िताब है

ओवरटाइम में भी वह सोता नहीं है ,
बोनस ना मिले फिर भी वह रोता नहीं है

हॉं, मिल जाएगा कोई ना कोई मर्द आपको
अपना दर्द छुपाया हुआ


मॉं और बीवी , दोनों ही उसको प्यारी है
सारे घर की उसके ऊपर ही ज़िम्मेदारी है

ज़िंदगी ने उसकी बराबर मारी है
डॉक्टर कहीं , इंजीनियर कहीं , पीयून भी है

थोड़ा बहुत सर पर उसके लोन भी है
इतना सब देख कर भी वह स्वार्थी है
लोग कहते हैं कि यह उसकी पैट्रियाकी है

वह ज़्यादा रूड नहीं है,
इसलिए कईयों के लिए शायद वह 'डूड' नहीं है

यह भी तो एक तरह का ग़म ही तो है,
ग़लती चाहे किसी की भी हो , दोषी तो हम ही हैं

तुम तो लड़के हो तुम्हें क्या गम है ? क्या डर है ?
यह उससे पूछो जो ग्रेजुएशन करके भी घर पर है
क्योंकि बेरोज़गारों से कोई नहीं पूछता
"क्यों भाई तू कैसा है ?"

दिक्कत यह है कि लोग उसे समझते नहीं हैं
जानते तो सब हैं , लेकिन कुछ कहते नहीं हैं
क्योंकि बॉस की सोसाइटी का एक ही रूल है
जो इमोशनल है ना बस वही फ़ूल है

ओ भाई जिंदगी में कभी भी रोने का नहीं
अपने ऑंसूओं के दाग़ , अपनी शर्ट से धोने का नहीं

कल हो ना हो यह तो एक फिल्मी बात है,
बाहर के सोसाइटी में कभी , अपने को खोने का नहीं

क्योंकि जीने का यही तो एक वे है
बधाई हो , आज इंटरनेशनल मेन्स डे है !

© ✍️©अभिषेक चतुर्वेदी 'अभि'