...

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अश्क
अश्क आंखों से बहकर डगर ढुढती।
मैला आंचल लिए फिर क्यूं घर ढुढती।
चिखता मैं रहाअश्क आंखें लिए।।
मैं कहां गीर गया ऐ नज़र ढुढती।
कल भी तनहा रहा,आज तनहा हूं मैं।
रात सपने में शाकी कफ़न ओढ़ती।
रात दिपक लिए सारा घर ढुढती।
जिसको देखा नहीं, क्यूं नज़र ढुढती।
अश्क आंखों से बहकर डगर ढुढती।
मैंला आंचल लिए फिर क्यूं घर ढुढती।
स्व रचित--अभिमन्यु

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