...

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इंसानियत 👥👣
आखों में पानी पर चेहरे पर मुस्कान थी ,
एक बच्ची बचपन के खिलौने बेचती , खुद बचपन से अंजान थी
वो आखों में आश थी , एक रोटी के लिए ।
उस ठिठुरती ठंड में उसको एक कम्बल की चाह थी
जब मदद को उसको कोई चेहरा न दिखा !
उसने ख्वाब में अपनी वो रोटी बना ली ,
ठंड न लग जाए तो चुभती कंकड़ की सड़क पर चादर बिछा ली ।
महल में सबको जब ठंडी सता रही थी
वो बच्ची तुम सबसे एक उम्मीद सजा रही थी ।
वो सह न पाई इस ठोकर को , वही दम उसने तोड़ दिया ,
तुम उसका साथ न दे पाए पर
इंसानियत का गला भी घोट दिया ।
© Saumya singh