...

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तुम्हारी आंखों में
तुम्हारी आँखों में जब खुद का प्रतिबिम्ब देखता हूँ
अपना तुम्हें तब मैं अभिन्न अंग देखता हूँ

प्रेम पर लिखी जा चुकी है लाखों कवितायें यूँ तो
तुम्हें मैं हर प्रेम कविता के संग देखता हूँ

ज़रा नज़रों से होती हो जब भी ओझल तुम
हालत अपनी बहुत ज़्यादा तंग देखता हूँ

चलोगी जो...