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आँखें
आँखें
पलकों के पिछे
रहती येआँखें हैं
ज़नाब
इनमें समदंर से
गहराई हैं
बादलों सी नमी हैं
कुछ अजीब सी
कोई अज़नबी सी
कोई भुरे हैं
कोई काले, निले भी
बेजुबान जुबाँ की
दास्ताँ बताती ये
बिना लफ्ज़ के
हकीकत बयाँ करती
पलकों के पिछे
बसर करती
आँखे ही हैं ये
ज़नाब
कोई ड़री ,कोई ख़ोई सी
इनमें प्यार हैं तो नफ़रत भी
हौसलें हैं उम्मीदें भी
आसमान में उड़ान
भरने की जिद भी
कोई सपनों में ख़ोई हैं
कोई ख्व़ाबों में उलझी हैं
पलकों के सगं ख़ेलती
येआँखें हैं
ज़नाब
देख़ती एक जैसी
मगर हर एक का
नज़रीया अलग हैं
पलकों के पिछे रहती
ये आँखें हैं
ज़नाब
© Subodh Digambar Joshi
पलकों के पिछे
रहती येआँखें हैं
ज़नाब
इनमें समदंर से
गहराई हैं
बादलों सी नमी हैं
कुछ अजीब सी
कोई अज़नबी सी
कोई भुरे हैं
कोई काले, निले भी
बेजुबान जुबाँ की
दास्ताँ बताती ये
बिना लफ्ज़ के
हकीकत बयाँ करती
पलकों के पिछे
बसर करती
आँखे ही हैं ये
ज़नाब
कोई ड़री ,कोई ख़ोई सी
इनमें प्यार हैं तो नफ़रत भी
हौसलें हैं उम्मीदें भी
आसमान में उड़ान
भरने की जिद भी
कोई सपनों में ख़ोई हैं
कोई ख्व़ाबों में उलझी हैं
पलकों के सगं ख़ेलती
येआँखें हैं
ज़नाब
देख़ती एक जैसी
मगर हर एक का
नज़रीया अलग हैं
पलकों के पिछे रहती
ये आँखें हैं
ज़नाब
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