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"वक्त"कहाॅं रूकता है
वक्त कहाॅं रूकता है,कभी
कभी नहीं
आगे बढ़ता हीं जाता है।
आज फिर फि़जा से धुॅंध छॅंटी है
हवा में गर्माहट है
हर ओर दिख रहा नवप्रस्फुटन
कलियाॅं चटकने लगी हैं।
मिल रही है आहट,बसंत की
सुरभित है हर दिशा
हरियाली छाने लगी है चहूॅंओर
उमंगित होने लगी हर निशा।
पर कुछ छूटा भी है, कहीं
शाखों से टूटकर पत्ते बिखरने लगे हैं
कुछ पाने की चाह में ,कभी
कुछ छूट जाना हीं होता है।
वक्त हीं तो हैं,कहाॅं रुकता है,कभी
कभी नहीं
आगे बढ़ता हीं जाता है।
© guddu srivastava
कभी नहीं
आगे बढ़ता हीं जाता है।
आज फिर फि़जा से धुॅंध छॅंटी है
हवा में गर्माहट है
हर ओर दिख रहा नवप्रस्फुटन
कलियाॅं चटकने लगी हैं।
मिल रही है आहट,बसंत की
सुरभित है हर दिशा
हरियाली छाने लगी है चहूॅंओर
उमंगित होने लगी हर निशा।
पर कुछ छूटा भी है, कहीं
शाखों से टूटकर पत्ते बिखरने लगे हैं
कुछ पाने की चाह में ,कभी
कुछ छूट जाना हीं होता है।
वक्त हीं तो हैं,कहाॅं रुकता है,कभी
कभी नहीं
आगे बढ़ता हीं जाता है।
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