12 views
बहुत है।।
हमारे घर के बाहर कतारे बहुत है। खुबसुरत से यहाँ नजारे बहुत है ।।
दस्तके बहुत है पर करे क्या,
जब दरो दिल है बन्द ।
अभी गरदिश मे तारे बहुत है ।
ठिठुरे ठंड में फिर भी हो इंतेजार।
ठहरने वाले कम, पर जलने को परवाने बहुत है।
है वक्त बुरा या बुरे है हम,
हमें समझने और सुलझाने को स्याने बहुत है।
ना जरूरत है हमें जीने के सहारे की। पर फिर भी, याद दिलाने को हर जख्म इशारे बहुत है।
नीयते बुरी है खुद उनकी ।
और कहते हैं, हमरे स्वाभाव में बंदिशे है कम ।
खुलके जीते हैं तो भी सवाले बहुत है।।
© pratima das
दस्तके बहुत है पर करे क्या,
जब दरो दिल है बन्द ।
अभी गरदिश मे तारे बहुत है ।
ठिठुरे ठंड में फिर भी हो इंतेजार।
ठहरने वाले कम, पर जलने को परवाने बहुत है।
है वक्त बुरा या बुरे है हम,
हमें समझने और सुलझाने को स्याने बहुत है।
ना जरूरत है हमें जीने के सहारे की। पर फिर भी, याद दिलाने को हर जख्म इशारे बहुत है।
नीयते बुरी है खुद उनकी ।
और कहते हैं, हमरे स्वाभाव में बंदिशे है कम ।
खुलके जीते हैं तो भी सवाले बहुत है।।
© pratima das
Related Stories
10 Likes
0
Comments
10 Likes
0
Comments