...

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खुद के लिए
खुद के लिए

वक्त से थोड़ा वक्त चुराकर खुद के लिए
उड़ने दे नील गगन में, अपने अरमानों के
पंख लिए
गुम हो गई थी मेरी उड़ान कहीं
भूल गई थी खुद की पहचान कहीं
नए पंख मिले हैं,नई ऊर्जा के साथ
आज खुलकर मुझे भी चहकने दो
उड़ने दो ऊंची उड़ान पंख फैलाए
अरमानों के साथ,उमंगों के साथ
ना जाने जिंदगी की डोर कब कट जाए
किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए
जी लेने दो मुझे भी खुलकर मेरी जिंदगी
अपनी चाहतों के कुछ लम्हे बिरोने दो
हर उम्मीद को जगने दो
खुशियों को परवान चढ़ने दो
नए हौसले नए तरंगों के साथ
कुछ पल तो जी लेने दो
‌‌ माधुरी राठौर ✍️




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