...

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गर्व
आह्लाद गर्व,
अभिमान सर्व,
हो क्षणभंगुर,
स्व में नश्वर,
तो है ग्रहणीय,
लगे रमणीय,
कालोपरांत,
यदि रहा प्रखर,
हो अन आदर,
जग में,
सब में,
बन महामूर्ख,
हो ख्याति प्राप्त,
प्रतिष्ठा समाप्त,
वचनों,
कथनों,
का भार नष्ट,
हो व्यर्थ कष्ट,
फिर मिथ्याभिमान
क्यों विद्यमान?


© Tuhinanshu Mishra