मैं टूटकर बिखर रही हूं...........✍🏻
कितने टूकडों में टूटकर बिखर रही हूं
मैं आज ख़ामोशी से दर-ब-दर रही हूं
अंदर ही अंदर लड़ती हूं मैं इक जंग से
कितनी ही अश्कों के साथ गुज़र रही हूं
चली हूं ज़माने के लहज़े से लहज़ा मिलाने
आज कल तो मैं शिकायतों में ठहर रही हूं
पल पल का हिसाब - किताब समेटे लिया
फिर भी तो मैं शीशे की तरह बिखर रही हूं
तलाश है मुझे वही पुराने चेहरे की...
मैं आज ख़ामोशी से दर-ब-दर रही हूं
अंदर ही अंदर लड़ती हूं मैं इक जंग से
कितनी ही अश्कों के साथ गुज़र रही हूं
चली हूं ज़माने के लहज़े से लहज़ा मिलाने
आज कल तो मैं शिकायतों में ठहर रही हूं
पल पल का हिसाब - किताब समेटे लिया
फिर भी तो मैं शीशे की तरह बिखर रही हूं
तलाश है मुझे वही पुराने चेहरे की...