...

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अंतः अस्ति प्रारंभः
जब वो छोड़ के चली गई, टूट गया था ये जहां,
महीनों कमरे में कैद, बस आँसू और दर्द बेपनाह।

किताबों में ढूंढी तसल्ली, लिखकर बयां किया हाल,
दुनिया से कटा रिश्ता, दिल में बस एक सवाल।

मुश्किल से उबरा खुद को, संभाला जब ये दिल,
उसकी शादी की खबर सुन,फिर भर आया ये कसक से भरा पल।

आईने में देखा खुद को, पूछा क्या हुआ है मुझे,
जो मेरा था ही नहीं, उसके लिए क्यों बर्बाद करूं मैं खुद को यूँ ही।

जितना उसके जाने से खोया, उससे ज्यादा पाया है मैंने,
समझ आया, जो नहीं है अपना,उसके लिए खुद को क्यों सताया है मैंने।

फिर मैंने सोचा, ज़िंदगी को फिर से शुरू करूंगा मैं,
अब किसी को इतना हक नहीं दूंगा,
जिसके जाने पर खो दूं मैं एक साल अपना यूँ ही।

अंतः अस्ति प्रारंभः, अंत ही एक नई शुरुआत है,
जो बीत गया उसे भूल, अब नई मंज़िल की चाहत है।
© नि:शब्द