...

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गरीबी
शाम जब कभी आती है
पत्थर दिल को दहलाती है
बात वही दोहराती है
बच्चे बिलखते आएंगे
खाने के लिए चिल्लायेंगे |
मुट्ठी भर खाने में
जब बैठ गए सब आंगन में
दो कौर गुटक रह जाएंगे
आंगन में सो जाएंगे
फिर नया सवेरा आएगा
पुनरावृति दोहरायेगा |
यह जीवन चक्र चले बढ़ता
वह शाम हो चाहे हो तड़का
यह शाम रोज ही आती है
पत्थर दिल को दहलाती है |
© देवेश शुक्ला