तुम्हारे लिए
इश्क़ की इतनी खामियां जताती हो
ये कैसा डर है तुम्हारा
तुम इतना क्यों घबराती हो
मैंने कब मांगी है बदले में मोहहबत तुमसे
ये जो इतना दर्द-दर्द रटते जाती हो
तुम्हारा दीदार...
ये कैसा डर है तुम्हारा
तुम इतना क्यों घबराती हो
मैंने कब मांगी है बदले में मोहहबत तुमसे
ये जो इतना दर्द-दर्द रटते जाती हो
तुम्हारा दीदार...