...

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तुम्हारे लिए
इश्क़ की इतनी खामियां जताती हो
ये कैसा डर है तुम्हारा
तुम इतना क्यों घबराती हो
मैंने कब मांगी है बदले में मोहहबत तुमसे
ये जो इतना दर्द-दर्द रटते जाती हो
तुम्हारा दीदार हो, तुम्हारी नज़रें तराशु मैं
तुम क्यों दूर दूर चली जाती हो
मैं एक ख़्वाब की तरह तुम्हे जीता हूँ
तुम क्यों हक़ीक़त दिखा के डराती हो
हाँ, मान लिया की अब नही होगी मोहहबत तुम्हे
तो क्यों न तुम इस शायर को आजमाती हो
इश्क़ की इतनी खामियां जताती हो
क्यों इतना घबराती हो
© Yash