...

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रिश्तों की आजादी..
रिश्तों की आजादी, हमें कहां मिल पाती है
पाबंदियों के ही घेरे में, ये घुट कर रह जाती है

जकड़े जाते हैं हम, रिवाजों के जंजीरों से
हमारे दिल के अरमानों पर, पानी फेरी जाती है

न अपनी कोई इच्छा, न अपनी कोई चाहत
दुसरों के इशारों पर ही, ये जिंदगी गुजारी जाती है

दिल की सारी ख्वाहिशें, हमारे दिल में ही दब जाती है
सिर्फ दर्द और घुटन ही, हमारे हिस्से आती है

जिंदा तो रहते हैं हम, पर जिंदगी बूत सी बन जाती है
मुस्कुराहटों के नाम पर, सिसकियों की कहकहे आती है