"चांद और समंदर"
#चाँदसमुद्रसंवाद
समंदर -
"ऐ चाॅद! तू तो छिपता निकलता रहता है!
मेरा वजूूद तेरी आवाजाही से मचलता है!"
चांद-
"क्या करूं मुझे नसीब ही कुछ ऐसा मिला"
ऊंचाई बहुुत मिली, मुकम्मल जहां न मिला!
© Manas
समंदर -
"ऐ चाॅद! तू तो छिपता निकलता रहता है!
मेरा वजूूद तेरी आवाजाही से मचलता है!"
चांद-
"क्या करूं मुझे नसीब ही कुछ ऐसा मिला"
ऊंचाई बहुुत मिली, मुकम्मल जहां न मिला!
© Manas