...

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बचपन
निपट अकेले उछल- कूदकर,
जाते थे स्कूल कभी।
भय चिंता दुख दर्द कोई भी
चीज सताती थी न कभी।
अल्हर फिरते इधर-उधर
हम खूब खेलते बस्ती मे।
फ़िक्र कोई न कोई चिंता
रहते हरदम मस्ती में।
सिर्फ पढ़ाई और लिखाई,
काम न था कुछ खास।
इसी भांँति हम कूद फांँदकर
हो गए बी.ए. पास।

याद अभी भी वही गाँव की गलियाँ आती हैं।
बचपन की फिर वही, सुहानी याद सताती है।

बाग़ बगीचे दादाजी के,
कई फलों के पेड़।
आम के मौसम में लग जाते
थे आमों के ढेर।
अपने बाग़...