दीवार
तुम सोए रहे गहरी नींद में
मैं बस जगती रही
निहारती रही तुमको
इक टक हो तकती रही
तुम सोए रहे गहरी नींद में
मैं बस जगती रही
पहली दफा का था ये सिलसिला
की मैंने तुमसे मुंह था फेरा
फर्क न तुम्हें ज़रा सा भी पड़ा
आज महसूस हुआ
रिश्ता तो हमारा है कमज़ोर बड़ा
अब डरती हूं कि
कहीं...
मैं बस जगती रही
निहारती रही तुमको
इक टक हो तकती रही
तुम सोए रहे गहरी नींद में
मैं बस जगती रही
पहली दफा का था ये सिलसिला
की मैंने तुमसे मुंह था फेरा
फर्क न तुम्हें ज़रा सा भी पड़ा
आज महसूस हुआ
रिश्ता तो हमारा है कमज़ोर बड़ा
अब डरती हूं कि
कहीं...