...

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ek aam insaan......
एक आम इंसान...
मैं क्या हूँ समझाऊँ कैसे, क्या कर सकता हूँ बतलाऊँ कैसे...
मुझमें कितनी स्किल है ये बताना मुश्किल है,
कोई साथ नहीं मेरे सब पैसों में अवेलेबल हैं,
कुछ करके मैं दिखलाऊँ कैसे घर में नहीं मेरे इतने पैसे,
अमीर बाप के बिगड़े शहजादे जब कुछ अच्छा सा कर जाते,
लोग खुश होते और तालियाँ बजाते पर वो सारे ये नहीं देख पाते,
मुझ जैसे लोग जो कुछ भी कर सकते हैं,
वो तो ये लोग कभी सोच भी नहीं सकते हैं,
दूसरों से करवाते हैं और खुदके नाम पर रखते हैं,
पर फिर भी लोग इन्हीं की तारीफें बकते हैं,
तारीफे काबिल तो यहाँ वहाँ भटकते हैं,
हताश होकर फिर वो दारू में बहकते हैं,
जवानी की उम्र में...