...

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यादें और तुम
वक्त-बेवक्त आ-आकर रूला जाती है याद तुम्हारी,
तुम तो नहीं हो पर दीवारों से होती है बात तुम्हारी।

तू शामिल है मेरी रूह के ज़र्रे ज़र्रे में कुछ इस तरहाँ,
रोते हुए को हँसा जाती है याद आकर बात तुम्हारी।

बहुत मिलें पर तुमसा चाहने वाला दूजा नहीं मिला,
यादें और तुम भूलाए नहीं जाते ऐसी जात तुम्हारी।

ये दिन तो बीत जाता है ज़िन्दगी की आपाधापी में,
पर लौटकर घर आते ही चली आती है याद तुम्हारी।

सब कुछ तो है पर तुम बिन अधूरा सा है"पुखराज"
क्या मेरे बिन भी वहाँ पे अधूरी है ये हयात तुम्हारी।

© पुखराज