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हक़ (The Truth
हक़ (The Truth)
ना जाने क्यों हक़ीक़त से लोग अपना मुहं छुपाते है,
सच्चाई से जीने वालो को जेलों का डर दिखाते है।
जब भी किसी ने अपनी आवाज़ को बुलंद किया है,
सिपाही बदन पे उनके लाठियां जमके बरसाते है।
कोई मज़लूमो की कहानी को अखबारों में लिखता है,
तो कोई अपनी ताक़त से दफ्तरों में छापे डलवाते है।
झूठ ज़िन्दगी का एहम हिस्सा सा बन गया है "रवि",
ढूंढते तो हैं मगर लोग सदाक़त को जैसे भुला से गए है।
दिखाई राह रास्तबाज़ी और सच्चाई की दुनियां को जिसने,
उसी मसीहा को लोगो ने देखो सूली पे भी चढ़ाया है।
राकेश जैकब "रवि"
ना जाने क्यों हक़ीक़त से लोग अपना मुहं छुपाते है,
सच्चाई से जीने वालो को जेलों का डर दिखाते है।
जब भी किसी ने अपनी आवाज़ को बुलंद किया है,
सिपाही बदन पे उनके लाठियां जमके बरसाते है।
कोई मज़लूमो की कहानी को अखबारों में लिखता है,
तो कोई अपनी ताक़त से दफ्तरों में छापे डलवाते है।
झूठ ज़िन्दगी का एहम हिस्सा सा बन गया है "रवि",
ढूंढते तो हैं मगर लोग सदाक़त को जैसे भुला से गए है।
दिखाई राह रास्तबाज़ी और सच्चाई की दुनियां को जिसने,
उसी मसीहा को लोगो ने देखो सूली पे भी चढ़ाया है।
राकेश जैकब "रवि"
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