जैसे भी समझो, प्रेम प्रेम ही है
पर मै तो
हमारे बीच के प्रेम को
अलौकिक ही कहूंगा
किसीको ऐसा नही लगे तो
वो समझदार जरा कम है
आपको समझाता हूँ..
आप मंदिरों मे जाते हो
अपने पसंद का प्रसाद लेकर
अर्पित करने इश्वर को
खुदा न खास्ता,
पंडित आपके प्रसाद से
ज्यादा हिस्सा भगवान् के पास रख
थोडा सा आपको वापस करता है
आपका मन एक मिनट के लिए ही
खिन्नता से भर जाता है
जबके,
आप लाए तो थे इश्वर के लिए ही ...
हमारे बीच के प्रेम को
अलौकिक ही कहूंगा
किसीको ऐसा नही लगे तो
वो समझदार जरा कम है
आपको समझाता हूँ..
आप मंदिरों मे जाते हो
अपने पसंद का प्रसाद लेकर
अर्पित करने इश्वर को
खुदा न खास्ता,
पंडित आपके प्रसाद से
ज्यादा हिस्सा भगवान् के पास रख
थोडा सा आपको वापस करता है
आपका मन एक मिनट के लिए ही
खिन्नता से भर जाता है
जबके,
आप लाए तो थे इश्वर के लिए ही ...