...

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इस शहर में क्या रखा है
इस शहर में क्या रखा है,बस मेरे अपने बसते हैं ।
इस शहर में क्या रखा है ,बस मेरे अपने बसते हैं।
कहीं चालाकी कहीं मक्कारी है ।
कहीं गिरते चरित्रों की अय्यारी है।
कहीं सच का मुखौटा पहने झूठी यारी है।
दिल करता है उड़ जाऊं, दूर कहीं में बस जाऊं ,
पर पैरों में बेड़ी भारी है ।
इस शहर में क्या रखा है ,बस मेरे अपने बसते हैं