...

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घनघोर अंधेरा
छाया जो अँधेरा इस शहर में
हुए बेघर दोपहर में
सुनसान सी थी सड़कें
गुमराह सा हो गया था मैं
बड़ी देर से समझ आई
रंगमंच का एक किरदार था मैं
काश ! कुछ ऐसा हो जाता
रहता यहाँ मैं कुछ और दिन
और भटक जाता मैं......।
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