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दुर्योधन
सौ भाई का सामर्थ्य जिस मैं,
सौ भाई का अस्तित्व जिस मैं,
जन्म से अधिमानी हूँ,
स्वभिमानी मैं, शक्तिशाली मैं, मैं दुर्योधन हूँ।
मेरे दिल में प्यार है, अपनों के खातिर जान भी कुरबान है,
धर्म का क्या बात करो
यह महाभारत ही अधर्म है।
पितामह भीष्म, गुरु द्रोण अदि कई सूर बीर थे,
छल, प्रबंच करने वालो
हार से सूची मात्र दूर थे।
मित्रता का नाम पर राधेय थे मेरे साथ,
निहस्था, धूमि पर हत्या कर के करते हो वीरो के बात।
देव अंश हो मगर भातृहन्ता हो सही,
मेरे भाइयों के प्रतिषोध के लिए,
मैं तुम पाँच पंडबो से डरता नहीं।
अगर मेरे जंघा ना तोडा होता तो मैं तुम पंडबो को मारता,
तुम्हारे रक्त की में रक्तास्नान करता,
राजज्ञान, अर्थज्ञान सबमें मैं निपुण हूँ,
गदा युद्ध में तो भीम से निपुण हूँ।
तूमसे क्या बात करें, तुम माधब के परछाई हो,
मुझे पापी कहते हो,
दामोदर,इस कुरुक्षेत्र में महान पापी तो तुम हो।
श्रेष्ठ कुरु हूँ मैं
मेरे भाग्य मुझसे डरता है,
अहंकारि नहीं हूं मैं, अहंकार मेरे दास है।