...

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दो मुँहें सांप था मेरा प्यार
उससे प्यार क्यूँ कर बैठे,
हमारी मती मारी गई थी ।
हमसे दिल लगाकर भी… रही वो हरपल परे,
क्यूँके हमेशा से… किसी और की जो थी ।।

कुछ अजब ही था, प्यार का अफसाना उसका,
जो लुभाती रही अदाओं से अपनी फकत हमें ।
एहतियात बरते जब जमाने की रिवायतो का,
तो गुस्से से सांस फुलाती रही देख हमें ।।

पता नहीं… क्या चल रहा था उसके मनमें,
कभी गुस्से तो… कभी दिलसे मिठे पुकार थे ।
क्या कहें…...