मज़ाक बन गया हूं।
मज़ाक बन गया हूं
समझना कोई चाहता नही
सभी की बेतुकी अटकलों में
सिर्फ़ एक रिवाज़ बन गया हूं
फलक पे बिठा कर दूर कर दिया है
पूजते हैं हर रोज़ सुबह शाम
ख़ामोशी मेरी नजरंदाज करे सब
प्रथाओं की गुठबंधी ने मजबूर कर दिया है
रीति रिवाज़, पूजा पाठ, व्रत कीर्तन बनाए मैने
इंसान की प्रगति और समापन...
समझना कोई चाहता नही
सभी की बेतुकी अटकलों में
सिर्फ़ एक रिवाज़ बन गया हूं
फलक पे बिठा कर दूर कर दिया है
पूजते हैं हर रोज़ सुबह शाम
ख़ामोशी मेरी नजरंदाज करे सब
प्रथाओं की गुठबंधी ने मजबूर कर दिया है
रीति रिवाज़, पूजा पाठ, व्रत कीर्तन बनाए मैने
इंसान की प्रगति और समापन...