...

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जी करता है...
जी करता है कभी कभी
चीखू जोर जोर से
चिल्लाऊ... रोऊ जार जार
या चुपचाप अकेली निहारू
आसमान को..उड़ते बदलो को
महसूस करु आंखे बंद करके
हवा को अपने बदन को छूते हुए
जी करता है कभी कभी
भूल जाऊ सारे रिश्ते नातों को
छोड़ दूं सारी जिम्मेदारियों को और
ज़ी लू खुद के संग खुद कुछ पल
जी करता है दौडू इतना कि
सांसे चढ़ जाए नसे अकड़ जाए
और सुनाई दे मुझे बस मेरी ही सांसे
© Madhumita Mani Tripathi