...

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उड़ता घोड़ा
अपनी वो तलाश
जिसे याद करने भर से
दिल धड़कता है मेरा
सांसें हो जाती तेज
जब कोई पुकार के नाम लेता है मेरा
सारे जख्म सूख जाते हैं
दिल हो जाता है हरा भरा
कदमों को खिंच ले जाते तुम यूं
न रह गया हो जैसे मुझमें कोई जोर मेरा
क्या कहूं की नागवार सा
लगने लगा मुझे अपना ही चेहरा
सिर्फ और सिर्फ रौशन झरोखे
सिर्फ और सिर्फ बे-आंखों के, निहारती नजरें
सबकुछ अनोखा था
शायद कुछ को लगता बातों में मेरी धोखा था
पर दिल में अगर मेरे झांकता
अक्श आंखों में जो, उसकी उभरते
मंजर अलग से बेमिसाल बातों से भरे
देख डूबते अपने जहन को
न कोई रोक सके,
बेलगाम सा मानो कोई
बन जाता वो उड़ता घोड़ा ...।




© सुशील पवार