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तब युद्ध ज़रुरी होता है
जब निरपराध निर्दोषों पर, पैशाचिक आक्रमण, होता है
मानवता की रक्षा हेतु, तब युद्ध ज़रूरी होता है।
जब सडकों पर, हैवानियत का, क्रूर प्रदर्शन होता है
उसका प्रतिउत्तर देने को, तब युद्ध ज़रूरी होता है।
जब धर्म के नाम पर, वहशीपन का, नंगा नर्तन होता है
दानवों को सबक सिखाने को, तब युद्ध ज़रूरी होता है।
माँ के शव के टुकड़ो पर, जब बिलख के, बचपन रोता है
उस नृशंसता को मिटाने को, तब युद्ध ज़रूरी होता है।
मानवता के हत्यारों को, जब, अंध समर्थन होता है
अपना अस्तित्व बचाने को, तब युद्ध ज़रूरी होता है।
अपने ही तन का अंग कोई, जब तन का दुश्मन होता है
तब अंग-भंग द्वारा "भूषण", तन शुद्ध ज़रूरी होता है।।
मानवता की रक्षा हेतु, तब युद्ध ज़रूरी होता है।
जब सडकों पर, हैवानियत का, क्रूर प्रदर्शन होता है
उसका प्रतिउत्तर देने को, तब युद्ध ज़रूरी होता है।
जब धर्म के नाम पर, वहशीपन का, नंगा नर्तन होता है
दानवों को सबक सिखाने को, तब युद्ध ज़रूरी होता है।
माँ के शव के टुकड़ो पर, जब बिलख के, बचपन रोता है
उस नृशंसता को मिटाने को, तब युद्ध ज़रूरी होता है।
मानवता के हत्यारों को, जब, अंध समर्थन होता है
अपना अस्तित्व बचाने को, तब युद्ध ज़रूरी होता है।
अपने ही तन का अंग कोई, जब तन का दुश्मन होता है
तब अंग-भंग द्वारा "भूषण", तन शुद्ध ज़रूरी होता है।।
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