...

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क्या यही है वोह आज़ाद हिंदुस्तान?
भारतवर्ष की गुलामी का इतिहास है सबसे बड़ा,
ब्रिटिशों के जंजीरों में बंधी थी मां भारती
अपने ही लालों के लहू से वो नहाती,
अपनी ही भूमि पर बेबस हो कर वो कराहती..
कितनी कश्मकश और जानों की दी आहुति...
फिर मिली आज़ादी,

अरे अरे... सुनो !
अभी बात खत्म नही हुई,
मां भारती एकता की थी मूरत,
प्रेम और विश्वास की थी सूरत ...
जहां पे न किसी चीज़ की पड़ती ज़रूरत ...
अब कैसा ये युग आया
जहां भारत स्वाधीनता के 78 सालों बाद भी हमारी मॉं आज़ाद नहीं?
क्या अब इस देश को बरसों पहले का बलिदान याद नहीं??


मेरा ये वतन अपने ही द्रोहियों से घिरा पड़ा है,
अपने दोषों को ना मानने पे अड़ा है,
राजनीति का है सारा खेल,
यहां कोई न कराता न्याय से याचक का मेल!
सत्ता की खत्म न होती भूख,
इन्हे कहां नजर आता है जनता का दुख..
चाहे किसानों की भूमि हो जाए बंजर,
पीछे से घोंपा ही जाएगा कर्ज़ का खंजर!

कहते हो ‘भारत देश महान’
फिर कैसे मार देते हो एक अजन्मे की जान?
कहते हो "आज़ाद देश के आज़ाद हम हैं नागरिक"
अरे फिर...