...

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सोया था, मुक्त था; जागा, बंदी पाया
सोया था, मुक्त था
जागा, बंदी पाया
जंजीरे दिखीं अनगिनत
उम्र का कम लगा साया
जगे कदम फिर भी बढ़ते गए
खुद को हम बदलते गए

मधुप मन की वाणी मेरी
निर्बल शब्दों की एक माला?
जप कर जिसे दिन रात
पिया था बस विष प्याला?
प्याला टूटे कैसे, जतन फिर भी करते गए
खुद को हम बदलते गए

चुन दिए गए हम जिस पर
खुद की मुरादों की एक दीवार थी !
मुरादें बदले कैसे, जतन करते गए
खुद को हम बदलते गए

वो सूक्ष्म क्षीण विचारों का सृजन
दिव्य स्वप्नों का पद्धतिबद्ध विसर्जन?
पर क्या परिवर्तन को स्वीकार्य होगा अब
हृदय से पूर्ण मेरा आत्मसमर्पण?
जतन फिर भी करते गए
खुद को हम बदलते गए

सार्थक उद्देश्य जीवन का
क्या है आत्मविकास का प्रण?
सृष्टि दिखे अलग क्यों
ले कृतज्ञता का दर्पण?
विडंबना छोड़, भूलें छोड़
क्या कर दूं जीवन लक्ष्य को अर्पण?
प्रश्न ये आत्मोत्थान के
क्या देंगे सही उत्तर?
इंतजार करूं कब तक
जतन हम करते गए
खुद को हम बदलते गए

© Ashutosh Kumar Upadhyay

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