...

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सोया था, मुक्त था; जागा, बंदी पाया
सोया था, मुक्त था
जागा, बंदी पाया
जंजीरे दिखीं अनगिनत
उम्र का कम लगा साया
जगे कदम फिर भी बढ़ते गए
खुद को हम बदलते गए

मधुप मन की वाणी मेरी
निर्बल शब्दों की एक माला?
जप कर जिसे दिन रात
पिया था बस विष प्याला?
प्याला टूटे कैसे, जतन फिर भी करते गए
खुद को हम बदलते गए

चुन दिए गए हम जिस पर
खुद की मुरादों की एक दीवार थी !
मुरादें बदले कैसे, जतन...