...

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चन्द अशआर ~


ज़िन्दगी पुर-वक़ार है अब भी।
इसके खंजर में धार है अब भी।

ज़ीस्त का कारवां गुज़र तो गया,
उसका गर्द ओ ग़ुबार है अब भी।

इसकी फ़ितरत में ही आवारगी है,
दिल ये बे -इख़्तियार है अब भी।

चीर दें पत्थरों का जो सीना,
आंसुओं में वो धार है अब भी।

प्यार तेरा उधार है मुझपर,
दिल तेरा क़र्ज़दार है अब भी।

क्या हुआ ग़र बिछड़ गया मुझसे,
तुझसे कुछ सरोकार है अब भी।

दुश्मनों की मुझे कमी क्या है,
एक लम्बी कतार है अब भी।
© इन्दु