...

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रोबोट बनने लगे हैं


क्या कीमत है जज़बातों की हम अब जानते नहीं हैं,
जब तक हम पर ना बीते दर्द वही,
तब तक हम किसी के दर्द को दर्द मानते नही हैं|


दौडे चले हैं अपनी ही धून में ,
अपनों को पीछे छोडे़ चले हैं,
आने वाले कल की फिकर में,
आज की खुशीओं को छोड़े चले हैं|

आसमान में उड़ने को,
धरती से रिश्ता तोड़े चले हैं,
उलझे हैं मेरे- तेरे की उलझन में,
एहसासों को दफन करने लगे हैं|


प्राकृति की ममता से दूर हो,
चीजों में सुख तलाशने लगे हैं,
लगता है हम इंसान नहीं,
रोबोट बनने लगे हैं|

© Himani