...

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सजगता ही सुरक्षा....
सजगता ही सुरक्षा....

जब भी अपनी बेटियों को,
मैंने प्यार से समझाया है ,
मेरी प्यारी बेटियों ने,
अक्सर यही प्रश्न उठाया है,
यही इक प्रश्न उठाया है......

हमको ही क्यों समझाती हो,
बेटों को क्यों नहीं समझाती,
हम स्वयं में सुधार करें,
इससे बेटों को अक्ल तो नहीं आती,
बेटों को अक्ल तो नहीं आती......

उनको भी तो समझाओ,
वे हमारा सम्मान करें,
हम कभी भी कहीं भी जाएं,
हम पर कुदृष्टि ना रखें,
हम पर कुदृष्टि ना रखें.......

जैसे मां, बहन और बेटी के लिए,
भाव उनके मन में आते हैं,
उसी दृष्टिकोण से हम, उन्हें,
नज़र क्यों नहीं आते हैं ?
क्यों? नजर नहीं आते हैं?……..

चाहें हम कितना ही कुछ कर लें,
पर मानसिकता उनकी ना बदलती है,
कभी मेकअप पर, कभी कपड़ों पर,
दुनिया हम पर ही टिप्पणी करती है...,

वो तो आज़ाद पंछी की तरह,
यहां-वहां पर उड़ते हैं,
हमसे लोग, यहां क्यों गयी?,
वहां क्यों गयी? ऐसे प्रश्न करते हैं,
ऐसे ही प्रश्न क्यों करते हैं?.......

क्या वो आज़ाद‌ हैं, हम आज़ाद नहीं !
क्या वो वंश हैं, हम कुछ भी नहीं!
कहते तो हैं बेटा- बेटी एक समान,
पर कोई समानता नहीं,
कोई समानता नहीं......
:
:
:
ध्यान से सोचूं उनकी बात,
तो मेरे हृदय में द्वंद से मच जाते हैं,
सारे प्रश्न, सारे तर्क उनके,
मुझे सही नजर आते हैं,
मुझे सही नजर आते हैं….,

फिर सोचती हूं कि इनको कैसे समझाऊं? ,
इस पुरुष प्रधान समाज की विषमता,
मैं इनको कैसे दिखलाऊं,
इनको कैसे दिखलाऊं.....

सोचते सोचते मेरे मन में,
एक विचार आया है,
पास बुलाकर उनका सर,
मैंने प्यार से सहलाया है....,

प्यारी बेटी, तुम नाज़ुक हो, कोमल हो,
पर बेटों से ज्यादा ताकतवर हो,
तुम ईश्वर द्वारा प्रदत्त मुझे,
एक खूबसूरत सा फल हो....,

मैं तो चाहती हूं कि तुम,
पंख लगा कर उड़ जाओ,
माता-पिता का नाम रोशन करो,
स्वयं भी प्रसिद्धि पाओ,
स्वयं भी प्रसिद्धि पाओ….,

पर डरती हूं सामाजिक,
खोखली मान्यताओं से,जो महिला को दबाती हैं,
गलती चाहे पुरुषों की हो,
दोषी महिला को ठहराती हैं,
दोषी महिला को ठहराती हैं…..,

मानसिक हो या शारीरिक,
कष्ट उन्हीं को झेलना पड़ता है,
कौन समझता है उनके मन को,
जो अंदर तक आहत होता है,
जो अंदर तक आहत होता है……,

यह दुनिया ऐसी ही है बिटिया,
हम किस-किस को बदलेंगे,
स्वयं को समझा लेंगे तो,
अच्छा जीवन जी लेंगे,
इज्जत से जीवन जी लेंगे………

मैं नहीं समझाऊंगी तुमको,
तो और कौन समझाएगा,
तुम्हारे विपत्ति काल में ,
तुम्हें कोई बचाने ना आएगा,
कोई बचाने ना आ पाएगा……,

तुम्हीं अपने साथ हमेशा,
तुम ही तो रहती हो,
तुम ही अपनी सच्ची सखी,
सच्ची संगनी होती हो....,

तुम दबो नहीं, तुम डरो नहीं,
तुम स्वयं जिम्मेदार बनो,
प्रत्येक तरह की स्थितियों से,
पहले से ही अवगत हो....,

जो विपत्ति के समय,
तुम्हारा मस्तिष्क तेजी से काम करे,
तुम्हारी सजगता और जागरूकता,
स्वयं तुम्हारा बचाव करे,
स्वयं तुम्हारा बचाव करें……,

निर्मल सा जीवन हो मेरी बेटियों का,
इसमें कोई दाग कभी ना लगने पाए,
मैं तो चाहती हूं मेरी बेटियां,
औरों की प्रेरणास्रोत बन जाए……,
मैं तो चाहती हूं, मेरी बेटियां, औरों की, प्रेरणास्रोत बन जाए………..

🙏 संवेदनाएं, निधि भारतीय🙏
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