मन्नत का धागा
तेरी बातें समझते भी हैं
और तुझे परखते भी हैं
कभी तुझसे उलझते भी है
कभी तुझ संग हँसते भी हैं
है अपना तू अजनबी नहीं
तेरे सिवा कोई साथी नहीं
हँसते मुस्कराते सवेरे से तुम
हसीन रौशनी सुबह की हम
इक कल्प वृक्ष से पावन तुम
उस पर मन्नत का धागा हम
NOOR EY ISHAL
© All Rights Reserved
और तुझे परखते भी हैं
कभी तुझसे उलझते भी है
कभी तुझ संग हँसते भी हैं
है अपना तू अजनबी नहीं
तेरे सिवा कोई साथी नहीं
हँसते मुस्कराते सवेरे से तुम
हसीन रौशनी सुबह की हम
इक कल्प वृक्ष से पावन तुम
उस पर मन्नत का धागा हम
NOOR EY ISHAL
© All Rights Reserved