...

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नहीं मिलता..!
फिर डूब जाना मिरी इक बात सुन लो‌ पहले
दरिया-ए-इश्क़ में कभी किनारा नहीं मिलता

आँखों में उतर‌ आती है इज़हार की सूरत
जिस शख़्स को लफ़्जों का सहारा नहीं मिलता

ना-मुमकिन है तेरे बग़ैर पलट कर जाना
अब आगे बढ़ने का भी मगर हौंसला नहीं मिलता

हज़ार लोग मिलते हैं ज़माने में हर रोज़ मुझे
कोई भी तुझ-सा दिलक़श बा-ख़ुदा नहीं मिलता

मुद्दतों से तमन्ना है ये ग़म का बोझ उतार दूँ
बाँटने को मगर कोई दोस्त पुराना नहीं मिलता

ये शहर अब अपना लगे भी तो किस तरह
कोई एक शख़्स भी तो यहाँ हमारा नहीं मिलता

यूँ तो चार-सूँ हुजूम है लाखों चेहरों का यहाँ
अफ़सोस दिल बेचारे को दीदार तुम्हारा नहीं मिलता

फिरते रहे दर-ब-दर राह-ए-मोहब्बत में तो जाना
यहाँ बिछड़ जाए कोई अपना तो दोबारा नहीं मिलता