...

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ग़ज़ल
2122 2122 2122 212

वो मुलाक़ाते हमारी आखिरी हँसना मेरा,
अब लगें है रोज़ खुद को हो रहा डँसना मेरा।

चालबाज़ी वो करेगा बात ही बेकार है,
सादगी थी वो वजह के फिर हुआ फँसना मेरा।

बस गया था वो हमारे दिल बसी ज्यों धड़कनें,
और इसके बाद खुद में था हुआ बसना मेरा।

आरज़ू थी वो ना फिसले रेत सा हमदम कभी,
बेबसी में ज़ोर से फिर हाथ का कसना मेरा।

राज़ है "जिगना" लिखें है प्यार इतना प्यार से,
प्यार वैसा कर लिया तो तय रहा धँसना मेरा।

©jignaa___

#ghazal