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क्या कहूं मैं क्या सुनाऊं
पल दो पाल में खुश होता हूं
पल दो पाल में उदास होता हूं
क्या कहूं में क्या बताऊं
जब में खुद समझ नहीं पाता हूं
दिखता हूं मैं खुश मगर
उदासी अपनी छुपाता हूं
शायद इसी तरह में अपने आप को
दूसरो से बचाता हूं
करता रहता हूं काम मगर
अकेले ही रहता जाता हूं
लोग होते है पास मेरे
जब जरूरत मैं
उनकी बन जाता हूं
अब क्या कहूं मैं क्या सुनाऊं
जब मैं खुद भी समझ नहीं पाता हूं
अकेले रहने की आदत है मगर
फिर मैं डर जाता हूं
लोगों के बीच में होता हूं
तब भी मैं घबराता हूं
यादें सारी मैं मेरी
सबको नहीं बतलाता हूं
क्या कहूं मैं क्या सुनाऊं
जब मैं खुद समझ नहीं पाता हूं
© SanVee
पल दो पाल में उदास होता हूं
क्या कहूं में क्या बताऊं
जब में खुद समझ नहीं पाता हूं
दिखता हूं मैं खुश मगर
उदासी अपनी छुपाता हूं
शायद इसी तरह में अपने आप को
दूसरो से बचाता हूं
करता रहता हूं काम मगर
अकेले ही रहता जाता हूं
लोग होते है पास मेरे
जब जरूरत मैं
उनकी बन जाता हूं
अब क्या कहूं मैं क्या सुनाऊं
जब मैं खुद भी समझ नहीं पाता हूं
अकेले रहने की आदत है मगर
फिर मैं डर जाता हूं
लोगों के बीच में होता हूं
तब भी मैं घबराता हूं
यादें सारी मैं मेरी
सबको नहीं बतलाता हूं
क्या कहूं मैं क्या सुनाऊं
जब मैं खुद समझ नहीं पाता हूं
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