...

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प्रतीक्षा
प्रतीक्षा है ।
उस क्षण की जब अंगना में चेहकती गौरैया की तरह खुशियां मुस्कुराएंगी ,
वो जो दूर है किसी दिन उनकी यादों की तरह लौट आएंगी।
प्रतीक्षा है ।
कि रोटियों के टेढ़े मेढे आकार को अब गोलाकार मिलेगा,
बूढ़े मा बाप को विदाई गई बेटी का घर आयी बहू से प्यार मिलेगा।
प्रतीक्षा है।
खुद के हाथो की बनी चाय अब खुद को भाती नहीं,
ये सुबह शाम की ना बदलने वाली ज़िन्दगी
रास आती नहीं।
प्रतीक्षा है,
कि, वो आए आखिर मैं भी अधिकारी हूं प्रेम का ,कोई गुफ्तगू करे साथ,
शर्मीले है कहा नहीं जाता पर अकेलापन सहा नहीं जाता, तुम ही भेजो नाथ।


© दास्तान