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kuchh लोग
कुछ लोग इतना बच-बचकर जीते हैं
कि जिंदगी उन्हें छू भी नहीं पाती।

उनके पास असफल प्रेम की कोई कहानी नहीं होती
किसी के छूट जाने का मलाल नहीं होता।

हर दम कचोटने वाली कोई ख्वाहिश नहीं होती,
किसी से इतना गुस्सा भी नहीं कि
ऊपरवाले से एक कत्ल की इजाज़त मांग सकें।

किसी से इतना मोह भी नहीं कि
उसकी तकलीफ में अकेले में खूब रो लें।

इनके पास न कोई पागलपन का किस्सा होता है
न ही बदन और दिल पर किसी चोट का निशान।

बर्फ की तरह ठंडे लोग
बर्फ जैसे ही बिना आवाज़ किए चुपचाप पिघल जाते हैं।

बचते-बचाते जीते हुए एक दिन
ज़िंदगी के अहसास से ही बचकर मर जाते हैं।