...

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रेप
एक दास्तां ने मुझे
ये लिखने पर मजबूर कर दिया,
कैसे एक हैवान ने
उस खुद से ही बहुत ज्यादे दूर कर दिया ।
आज वो भी खुशी से खेलती
सबके हाथों में हाथ डालकर वो भी खुशी से झूमती,
पर शायद ये सब नहीं था ज़िन्दगी में
तभी तो उसके जीवन को किसी ने,
डर का डरावना संसार कर दिया ।
गुजराती कुछ लम्हें
वो भी अपनो के साथ में
और यादें भी बनाती सबके साथ,
वो भी कर लेती किसी पर भी विश्वास
अगर ना करता कोई उसकी इज्जत से खिलवाड़ ।
हर वक़्त डर के साए में रहती हैं ये
और एक अंजान खतरे का एहसास ये करती हैं,
ज़िन्दगी तो गुजार लेती हैं ये जैसे तैसे
पर वो विश्वास कहां किसी पर कर पाती हैं।
हंसती - खेलती ज़िन्दगी इनकी
घुटन भरी हो जाती है,
तुम क्या जानो उस एहसास को
जब किसी के पास आने पर
वो उससे कितना डर जाती हैं ।
ऐसे तो ये आज भी देवी रूप में
हर घर में पूजी जाती हैं,
पर कुछ हैवानों के चलते ही
रात में घर में निकलने से पहले
ये सोच में पड़ जाती हैं ।
कुछ लोग आज भी हैं जो
दोष इन्हीं का देते हैं,
छोटे कपड़े पहनती हैं,ऐसा बोलकर
इनकी बची खुशी भी ले लेते हैं ।
एक सवाल मेरा भी है
इन इज्जत के सौदागरों से,
जिन कपड़ों का हवाला देकर
तुम इनकी इज्जत उछालते हो,
मै पूछना चाहूंगा तुमसे
इतनी बेशर्मी कहां से लाते हो ।
युगों - युगों के बाद भी
आज भी वहीं कहानी है,
असुरक्षित है नारी जीवन
और सारी ज़िन्दगी इन्हें ऐसे ही बितानी है ।
चलो हैवानियत के इन बादशाहों को
हम सब मिलकर हराते हैं,
सुरक्षित हो स्त्री जहां
ऐसा संसार बनाते हैं ।
उन हैवानों के डर को
उनके मन से हम भगाते हैं,
खुशी रह सकें स्त्री भी जहां
ऐसा प्यारा संसार बनाते हैं ।।
© chhipi__kalam